मेहनत और ईमानदारी का फल - inspirational story in hindi- storykunj
गुप्ता जी एक किराना व्यापारी है रोज़ाना की तरह गुप्ता जी ने अभी दुकान खोली ही थी कि एक महिला उनके पास आई और बोली ......
"सेठ जी ये अपने दस रुपये रख लो"
गुप्ता जी उस गरीब सी औरत को प्रश्नवाचक नजरों से देखने लगे, जैसे कि वह पूछ रहे हो कि मैंने कब तुम्हें दस रुपये दिये थे ?
महिला बोली ........."सेठ जी कल शाम को मैं आपकी दुकान से कुछ सामान लेकर गई थी तब मैंने आपको सौ रुपये दिये थे। मैंने 70 ₹ का सामान खरीदा था। आपने गलती से 30 रुपये की जगह मुझे 40 रुपये लौटा दिये।"
गुप्ता जी ने दस रुपये के नोट को अपने माथे से लगाया, फिर गल्ले में डालते हुए बोले .....…
एक बात बताइये बहन जी, कल आप सामान खरीदते समय कितने मौल भाव कर रही थी। यहां तक कि पांच रुपये कम करवाने के लिए आपने कितनी बहस की थी। और अब आप ये दस रुपये लौटाने चली आई हो
महिला बोली ......."सेठ जी पैसे कम करवाना मेरा हक है।" लेकिन एक बार चीज का मौलभाव हो जाने के बाद, "उस चीज के कम पैसा देना पाप है।"
गुप्ता जी उस महिला से कहने लगे....... हां..... लेकिन आपने कम पैसे कहाँ दिये? आपने तो पूरे पैसे दिये थे, ये दस रुपए तो मेरी गलती से आपके पास चले गए थे। रख लेती, तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था।
महिला बोली ....... बेशक आपको कोई फर्क नहीं पड़ता, मगर मेरे मन पर हमेशा ही ये बोझ रहता कि मैंने जानते हुए भी आपके पैसे खा लिए, इसलिए मैं रात को ही आपके पैसे वापस देने आई थी मगर उस समय आपकी दुकान बन्द हो चुकी थी।
गुप्ता जी ने महिला को आश्चर्य से देखते हुए पूछा ......."आप कहाँ रहती हो ?"
वह बोली...... "सेक्टर उन्नीस में रहती हूँ।"
गुप्ता जी जवाब सुनकर हैरान रह गए , बोले...... "आप 10 किलोमीटर दूर से" ये दस रुपये देने,"दूसरी बार आई हो?"
महिला बड़े सहज भाव से बोली...... "हाँ सेठ जी दूसरी बार आई हूँ" मन का सुकून चाहिए तो "ऐसा करना पड़ता है।" आज मेरे पति इस दुनिया मे नहीं हैं, मगर उन्होंने मुझे एक ही बात सिखाई थी कि "कभी दूसरे के हक का एक पैसा भी मत खाना क्योंकि इंसान चुप रह सकता है ... मगर "ऊपर वाला कभी भी, हिसाब मांग सकता है और... "उस हिसाब की सजा मेरे बच्चों को भी मिल सकती है"
इतना कह कर वह महिला वहां से चली गई।
उस महिला के जाते ही गुप्ता जी ने गल्ले से दो सौ रुपये निकाले और अपनी दुकान से बाहर की ओर जातेजाते अपने नौकर से बोले रामू तुम दुकान का ख्याल रखना, मैं बस अभी आता हूँ।
गुप्ता जी बाजार में ही एक दुकान पर पहुंचे। फिर उस दुकान वाले को दो सौ रुपये देते हुए बोले.......केशव जी, ये अपने दो सौ रुपये रख लीजिए, कल जब आप सामान लेने आये थे, तब हिसाब में ज्यादा जुड़ गए थे।
केशव हँसते हुए बोले ......."भाईसाहब पैसे हिसाब में ज्यादा जुड़ गए थे तो आप मुझे ये रुपए तब दे देते जब मैं दुबारा आपकी दुकान पर आता"... इतनी सुबह सुबह आप दो सौ रुपये देने चले आये।
गुप्ता जी बोले ...... कल पर क्या भरोसा ?" जब आप दुबारा आते ? "तब तक मैं मर जाता तब"..?? आपके मुझमें दो सौ रुपये निकलते हैं, ये आपको तो पता ही नहीं था, न..? इसलिए देना जरूरी था। पता नहीं ...? "ऊपर वाला कब हिसाब मांगने लग जाए"...? और... "उस हिसाब की सजा मेरे बच्चों को भी, मिल सकती है"...
इतना कह कर गुप्ता जी तो वापस अपनी दुकान पर चले ले गए.......?
मगर केशव के दिल में खलबली मच गई , क्योंकि आठ साल पहले उसने अपने एक दोस्त से "चार लाख रुपये" उधार लिए थे। मगर पैसे देने के दूसरे ही दिन,"वो दोस्त हार्ट अटक से मर गया।"
दोस्त के घर वालों को इन पैसों के बारे में पता नहीं था। इसलिए किसी ने उससे पैसे वापस मांगे नहीं थे। केशव के दिल में लालच आ गया था इसलिए वह भी खुद पहल करके उसके परिवार को पैसे लौटाने नहीं गया। आज उसी दोस्त का परिवार बहुत गरीबी में जी रहा था। दोस्त की पत्नी लोगों के घरों मे झाडू ,पौंछा, बर्तन मांजने का काम करके बच्चों को पाल रही थी। फिर भी, केशव उनके पैसे हजम किये बैठा था।
गुप्ता जी का ये वाक्य " पता नहीं ...? "कब ऊपर वाला हिसाब मांगने बैठ जाए"...? और ...."उस हिसाब की सजा मेरे बच्चों को भी मिल सकती है"....
केशव को भी अब डर लग रहा था
वो दो तीन दिन तक टेंशन में रहा । आखिर में उसका जमीर जाग गया। उसने बैंक से चार लाख रुपये निकाले और पैसे लेकर दोस्त के घर पहुँच गया। दोस्त की पत्नी घर पर ही थी।
वह अपने बच्चों के पास बैठी उन्हें कुछ अच्छी बातें सिखा रही थी कि केशव जाकर उसके पैरों में गिर गया और कहा आप एक एक रुपये के लिए संघर्ष कर रही हो, मुझे क्षमा करना मैं आपके पैसे समय पर नहीं दे सका, उस विधवा औरत के लिए चार लाख रुपये बहुत बड़ी रकम थी, पैसे देखकर उसकी आँखों में आँसू आ गए। वह केशव को दुआएं देने लगी, जो उसने ईमानदारी दिखाते हुए, उनके पैसे लौटा दिये।
"ये वही गरीब महिला थी....," जो" "गुप्ता जी को उनके दस रुपये लौटाने, दो बार गई थी"...।
अपनी "मेहनत" और "ईमानदारी" का खाने वालों की ईश्वर "परीक्षा" जरूर लेता है मगर कभी भी, उन्हें अकेला नहीं छोड़ता। एक दिन सुनता जरूर है "ऊपर वाले पर भरोसा रखिये"
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